मेरु बचपन और गाँव
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
जख बसदी छै घिलुणी और डाल्यू की छांव।
ए जिंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
जख ब्वारी लाज से मुंड ढक कर चलदी।
जख माँ का अनुसाशन माँ छै बेटी पलदी।
सभ्यूं थे नचे देन्दी छै दादी खल्डा मा लेटी।।
एक गुठ्यार मा रैंदा छा मिली जुली सभि भाई।
प्रेम से रैन सभी भाई दादा न ही बात सिखाई।
दादा जी हमथे सिखान्दा छ जिंदगी भर कु दाव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
गांव मा होन्दु छौ अदब सभी बड़ा बुजुर्गों कु।
ज़ोर से भी नि बोली कभी के नाती न दादा कु॥
नींद आई नि कभी सुणी क्वी,
बिना कहानी कु।
आज भी याद आना रंदिन कहानी दादी सुनाई जु।।
सहर बटि ले चल जिंदगी मेरी मे थे मेरु प्यारु गाँव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
खाली बैठ्या होन्दा छा जब कभी घर मा बाबा जी।
न्यार,
जूड़ा ऑर म्वाला बड़ोंदा छा गोरू बछरू कु जी॥
उठ जाँदा छा लोग सभी तब आन से पैलि घाम।
और कर दीन्दा छा पूरा सभी दुफ़रा से पैलि काम॥
हे प्रभु मिथे फिर व सुबर फिर दिखे दे पदयून छौ
पाँव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
होली जब हुँदी छै म्वास उल्टा तवा का लगांदा छा।
बचपन मा “होली का दाना” गीत हमेसा गान्दा छा॥
गिली डंडा,
खोखो, आँख मिचोनी,
हमुन सभी खेली॥
छुटा छा जब फील्डिंग भी सबसे मुड़ी कल्न मा कैरी।
सुबर सेबर बंठा लेकी जान्दा छा लाना कु पाणी नाव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
जान्दा छा जब सभी दग्ड्या स्कूल खिलण ढ़ौ का पार।
आज भी याद आन्दी स्कूल क और गुरुजी की वा मार॥
आज भी याद आन्दी
स्कूल मा बिचदा छा गदमया औंला।
दिन्दा छ्या चार ,फाड़ीक
दुक्खड़ का बदली औंला ॥
कोदा झंगोरा ऑर गेहूँ का बाटु मा बंददा छ्या डाम ।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
आज भी याद करना रैंदा बख़रा ऑर पौला डांग।
जख चरयां छा सभी दग्ड्यो दगड़ी गौड़ी बाछी ढ़ांग॥
डिन्ड बाती लान्दा छ्या ककड़ी अमरूद ऑर आम।
कभी हमुन नि करी यों सभी फल फूलों का दाम।
बैठ्या रैंदा ख़ानक यों फलों थे आम डाली का छांव॥
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
हरयाली ऑर डांडी कान्ठ्यू का बीच बश्यू च।
पाणी भी कमी नि यख सीम ऑर धरगुड़ च॥
याणु भलु गौं च मेरु जख भूम्या ऑर महादेव च।
पित्रों कु बसायूं स्यालना मेरु सत सत नमन च ॥
दिल्ली गुड़गाँव का प्रदूषण देन्दु च फेफड़ो मा घाव।।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
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