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Friday, September 15, 2017

माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari)

माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari)

माधो सिंह भंडारी जिन्हें माधो सिंह मलेथा भी कहा जाता है। उनका जन्म सन 1595 के आसपास उत्तराखंड राज्य (Uttarakhand state) के टिहरी जनपद (Tehari district) के मलेथा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सोणबाण कालो भंडारी था। जो वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी बुद्धिमता और वीरता से प्रभावित होकर तत्कालीन गढ़वाल नरेश ने सोणबाण कालो भंडारी को एक बड़ी जागीर भैंट की थी। माधो सिंह भी अपने पिता की तरह वीर व स्वाभिमानी थे।
माधो सिंह भंडारी कम उम्र में ही श्रीनगर के शाही दरबार की सेना में भर्ती हो गये और अपनी वीरता व युद्ध कौशल से सेनाध्यक्ष के पद पर पहुंच गये। वह राजा महिपात शाह (1629-1646) की सेना के सेनाध्यक्ष थे। जहां उन्होने कई नई क्षेत्रों में राजा के राज्य को बढ़ाया और कई किले बनवाने में मदद की।

एक बार छुट्टियों में जब वह अपने गांव मलेथा आये तो वहां उन्हें वह स्वादिष्ट भोजन नहीं मिला जिसको वह राज-महल में पाने के आदी थे। वह अपनी पत्नी पर गुस्सा हुए और उन्होने अच्छा भोजन मांगा जबाब में पत्नी नें उन्हे वे सूखे खेत दिखा दिये जो पानी के अभाव में अनाज, फल व सब्जियां उगाने में असमर्थ थे। माधों सिंह बैचेन हो गये और उन्होनें निश्चय किया किसी भी तरह मलेथा गांव में पानी लेकर आयेंगे। गांव से कुछ दूर चन्द्रभागा नदी बहती थी, लेकिन नदी व गांव के बीच में बड़े-बड़े पहाड़ व चट्टानें थीं। माधों सिंह ने विचार किया कि अगर किसी प्रकार पर्वतीय नदी के मध्य आने वाले पहाड़ के निचले भाग में सुरंग निर्माण की जाये तो नदी का पानी गांव तक पहुंचाया जा सकता हैं। दृढ़ निश्चयी माधो सिंह ने सुरंग खोदने वाले विशेषज्ञों व गांव वालों को साथ लेकर काम शुरु कर दिया। महीनों की मेहनत के बाद सुरंग तैयार हो गयी। सुरंग के ऊपरी भाग में मजबूत पत्थरों को लोहे की कीलों से इस प्रकार सुदृढ़ता प्रदान की गयी कि भीषण प्राकृतिक आपदा का भी उन पर प्रभाव नहीं पड़ सके।

माधो सिह को अपने जवान पुत्र गजे सिंह को नहर बनाने की प्रक्रिया में बलि पर चढ़ाना पड़ा। उस क्षेत्र की लोक कथाओं के अनुसार जब सुरंग बनकर तैयार हो गयी तब नदी के पानी को सुरंग में ले जाने के अनेक प्रयास किये गये लेकिन कई तरह के बद्लावों, पूजा पाठों के बाद भी नदी का पानी सुरंग तक नहीं पहुंच पाया। माधो सिंह काफी परेशान हो गये। एक रात माधो सिंह को सपना आया कि उन्हें पानी लाने के लिये अपने एकमात्र बेटे की बलि देनी पड़ेगी। पहले तो वह इसके लिये तैयार नहीं थे, लेकिन बाद में अपने पुत्र गजे सिंह के ही कहने पर वह तैयार हो गये। उनके पुत्र की बलि दी गयी और उसका सर सुरंग के मुँह पर रख दिया गया। इस बार जब पानी को मोड़ा गया तो इस बार पानी सुरंग से होते हुए सर को अपने बहाव में बहा ले गया और उसे खेतों में प्रतिष्ठापित कर दिया। जल्दी ही माधों सिंह की छुट्टियां खतम हो गयी और वह वापस श्रीनगर चले गये फिर कभी अपने गाँव लौट कर न आने का निर्णय किया।
आज मलेथा गांव समृद्ध व हरा भरा है, लेकिन उस गांव के लोग अभी भी अपने नायक माधो सिंह को नहीं भूले हैं और वह माधों सिंह द्वारा बनायी गयी नहर आज तकरीबन चार सौ सालों बाद भी मलेथा तक पानी पहुंचा रही है।

Thursday, September 14, 2017

म्यारा लाटा mera lata( MAA)

म्यारा लाटा

लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।
गौ  मुलुक  छोड़ीक अपना,  परदेश एमए छा तुम बसना।।
अपना बचपन का दिन बिसरी, भै बैनों और माँ थे बिसरी॥
अपना गौ  गल्यू  थे  छोड़ी, कख गे लाटा घर गौ थे छोड़ी॥
लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।

जै डन्ड्याली चौका मा खेली, कख गे तु लोखुंका का गैली॥
यखी छन तेरा खेल खिलौना, जौं थे देखि म्यारा दिन काटोना॥
झट औ बेटा  तु  घर दौड़ी, वापस कभी ना जै तु मे थै छोड़ी॥
लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।

मेरा लाटा कुछ मजबूरी छन, गौ का भी सभी लोग शहर मा छन।
तु फिकर नि करी म्यारा लाटा, राई शहर मा आराम से लाटा
अच्छा लत्ता कपड़ा बूट पैनी, फिकर मा मेरी परेशान नि रैनी।
लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।

याद तेरी भौत सतान्दी मै थै, थर थरान्दी जिकुडी मा ढुंगा धेरी॥
बोलु त्वै मा एक बात बेटा ,ना दीखे बच्चों थै बड़ा शहर अपना॥
तेरु भी शहर लगालू छोटु,  कब तक ऊनथे कब तक ढूंड्नी रैली॥
लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।

मि त छौं अनपढ़ लाटा म्यारा, मै जनि नि देखि तु सुपीन्या॥
व्है गयों बौल्या याद मा त्यारा,बातों थै मेरी दिल मा ना लगैना॥
लाटा म्यारा कन बिसरी हमथे, कख बिसरी तु अपना गौ थे।

गौ  मुलुक  छोड़ीक अपना,  परदेश एमए छा तुम बसना।।

Sunday, September 10, 2017

पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal)

पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal)


Pauri Garhwal District
PAURI GARHWAL DISTRICT


  • उपनाम – गढ़वाल
  • अस्तित्व – 1840 ईसवी
  • क्षेत्रफल – 5438 वर्ग किमी .
  • तहसील – 10 (पौड़ी, श्रीनगर, थलीसैण, कोटद्वार, थुमाकोट, लैंसडाउन, यमकेश्वर, चौबटाखाल, चकीसैण, सतपुली)
  • विकासखंड – 15 (कलजीखाल, पौड़ी, थलीसैण, पाबौ, रिखणीखाल, बीरोंखाल, दुगड्डा, लैंसडाउन, कोट, द्वारीखाल, यमकेश्वर, पोखड़ा, नैनिडाडा, खिर्सू, पाणाखेत)
  • प्रसिद्ध मन्दिर -ज्वालपा देवी, दुर्गादेवी, सिद्धबली मंदिर, नीलकंठ महादेव,  धारीदेवी, चामुंडादेवी, विष्णु मंदिर, कमलेश्वर मंदिर, ताड़केश्वर मंदिर
  • प्रसिद्ध मेले – सिद्धबली जयंती, गेंदा कौथिक, वीरचन्द्रसिंह गढ़वाली मेला, मधुगंगा मेला, बैकुंठ चतुर्दशी मेला, ताड़केश्वर मेला, गंवाडस्यू मेला, कण्वाश्रम मेला, भुवनेश्वरी देवी मेला
  • प्रसिद्ध पर्यटक स्थल – खिर्सू, चीला, कालागढ़, दूधातोली, पौड़ी, श्रीनगर, लैंसडाउन, कोटद्वार
  • गुफायें – गोरखनाथ गुफा
  • जलविद्धुत परियोजनायें – रामगंगा परियोजना, चीला परियोजना
  • सीमा रेखा – पूर्व में अल्मोड़ा व चमोली, पश्चिम में हरिद्वार व देहरादून, उत्तर में रुद्रप्रयाग व टिहरी, दक्षिण में उत्तर प्रदेश
  • राष्ट्रीय उद्यान – सोनानदी राष्ट्रीय उद्यान, जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान, राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
  • राष्ट्रीय राजमार्ग – NH-121
  • संस्थान – एन.आई.टी. श्रीनगर, बी.इ.एल.कोटद्वार, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली मेडिकल कॉलेज
  • विधानसभा क्षेत्र – 6 (कोटद्वार, पौड़ी (अनुसूचित जाति ), श्रीनगर (अनुसूचित जाति ), चौबटाखाल, यमकेश्वर, लैंसडाउन)
  • लोकसभा सीट – पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट के अंतर्गत
  • नदी – पश्चिम रामगंगा , नयार, अलकनंदा

Pauri Garhwal

  • Nickname – Garhwal
  • Existence – 1840 A.D.
  • Area – 5438 Sq. Km.
  • Tehsil – 10 (Pauri, Srinagar, Thlisan, Kotdwara, Thumakot, Lansdowne, Ymkeshhwar, Chaubtakhal, Chkisan, Satpuli)
  • Block – 15 (Kaljikhal, Pauri, Thlisan, Pabu, Rikhanikhal, Bironkhal, Dugdda, Lansdowne, Koat, Dwarikhal, Ymkeshhwar, Pokhdha, Nanidada, Khirsu, Panakhet)
  • Popular Temples – Jwalpa Devi, Durgadevi, Siddhbali Mandir, Neelkanth Mahadev, Dharidevi, Chamundadevi, Vishnu Mandir, Kamleshwar Mandir, Tadhkeshhwar Mandir
  • Popular Festivals – Siddhbli Jayanti, Gainda Kauthik, Veer Chandra Singh Garhwali Mela, Madhuganga Mela, Baikunth Chaturdasi Mela, Tadhkeshhwar Mela, Ganwadsyu Mela, Knwashram Mela, Bhuvaneshwari Devi Mela
  • Popular Tourist Place – Khirsu, Cheela, Kalagdh, Dudhatoli, Pauri, Srinagar, Lansdowne, Kotdwar
  • Cave – Gorakh Nath Cave
  • Hydroelectric Project – Ramganga Project, Cheela Project
  • Border Line – East – Almora & Chamoli, West – Haridwar & Dehradun, North – Rudrprayag & Tehari, South – Uttar Pradesh
  • National Park – Sonandi National Park, Jim Corbett National Park, Rajaji National Park
  • National Highway – NH-121 (Kashipur – Bubakhal)
  • Institutional – NIT Srinagar, B.E.L Kotdwar, Veer Chandra Singh Garhwali Medical College
  • Assembly Area – 6 (Kotdwar Pauri (SC), Srinagar (SC), Chaubtakhal, Ymkeshhwar Lansdowne)
  • Loksabha Seat –  Under Pauri Garhwal constituency
  • River – West Ramganga, Nayaar, Alaknanda

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)

गढ़वाल की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को छठी का दूध याद दिलाया था। गढ़वाल की इस वीरांगना का नाम था ‘तीलू रौतेली’। तीलू रौतेली का जन्म पौड़ी गढ़वाल के गुराड गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम भूपसिंह था, जो गढ़वाल नरेश के सेना में थे।
तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ। इसको लेकर कोई तिथि स्पष्ट नहीं है। लेकिन गढ़वाल में 8 अगस्त को उनकी जयंती मनायी जाती है और यह माना जाता है, कि उनका जन्म 8 अगस्त 1661 को हुआ था। उस समय गढ़वाल में पृथ्वीशाह का राज था।
गढ़वाल के लोककथाओं के अनुसार गढ़वाल के राजा और कत्यूरी राजाओं के बीच युद्ध आम माना जाता था। तीलू रौतेली भगतू और पथ्वा की छोटी बहन थी, जिसने बचपन से ही तलवार और बंदूक चलाना सीख लिया था। छोटी उम्र में ही तीलू की सगाई ईड़ा के भुप्पा नेगी से तय कर दी गयी थी, लेकिन शादी होने से पहले ही उनका मंगेतर युद्ध में वीर गति का प्राप्त हो गया था। तीलू ने इसके बाद शादी नहीं करने का फैसला किया था। इस बीच कत्यूरी राजा धामशाही ने अपनी सेना को मजबूत किया और गढ़वाल पर हमला बोल दिया। खैरागढ़ में यह युद्ध लड़ा गया। मानशाह और उनकी सेना ने धामशाही की सेना का डटकर सामना किया लेकिन आखिर में उन्हें चौंदकोट गढ़ी में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद भूपसिंह और उनके दोनों बेटों भगतू और पथ्वा ने मोर्चा संभाला। भूपसिंह सरैंखेत या सराईखेत और उनके दोनों बेटे कांडा में युद्ध में मारे गये।

सर्दियों के समय में कांडा में बड़े मेले का आयोजन होता था और परंपरा के अनुसार भूपसिंह का परिवार उसमें हिस्सा लेता था। तीलू ने भी अपनी मां से कहा कि वह मेले में जाना चाहती है। इस पर उसकी मां ने कहा, ”कौथिग जाने के बजाय तुझे अपने पिता, भाईयों और मंगेतर की मौत का बदला लेना चाहिए। अगर तू धामशाही से बदला लेने में सफल रही तो जग में तेरा नाम अमर हो जाएगा। कौथिग का विचार छोड़ और युद्ध की तैयारी कर।” मां की बातों ने तीलू में भी बदले की आग भड़का दी और उन्होंने उसी समय घोषणा कर दी कि वह धामशाही से बदला लेने के बाद ही कांडा कौथिग जाएगी। उन्होंने क्षेत्र के सभी युवाओं से युद्ध में शामिल होने का आह्वान किया और अपनी सेना तैयार कर दी। तीलू ने सेनापति की पोशाक धारण की। उनके हाथों में चमचमाती तलवार थी। उनके साथ ही उनकी दोनों सहेलियों बेल्लु और रक्की भी सैनिकों की पोशाक पहनकर तैयार हो गयी। उन्होंने पहले अपनी कुल देवी राजराजेश्वरी देवी की पूजा की और फिर काले रंग की घोड़ी ‘बिंदुली’ पर सवार तीलू, उनकी सहेलियां और सेना रणक्षेत्र के लिये निकल पड़ी। हुड़की वादक घिमंडू भी उत्साहवर्धन के लिये उनके साथ में था।
तीलू ने खैरागढ़ (वर्तमान में कालागढ़) से अपने अभियान की शुरूआत की और इसके बाद लगभग सात साल तक वह अधिकतर समय युद्ध में ही व्यस्त रही। उन्होंने दो दिन तक चली जंग के बाद खैरागढ़ को कैत्यूरी सेना से मुक्त कराया था।
तीलू ने खैरागढ़ के बाद टकोलीखाल में मोर्चा संभाला और वहां बांज की ओट से स्वयं विरोधी सेना पर गोलियां बरसायी। कैत्यूरी सेना का नेतृत्व कर रहा बिंदुआ कैंत्यूरा को जान बचाकर भागना पड़ा। इसके बाद उन्होंने भौण (इडियाकोट) पर अपना कब्जा जमाया।
तीलू जहां भी जाती वहां स्थानीय देवी या देवता की पूजा जरूर करती थी और वहीं पर लोगों का उन्हें समर्थन भी मिलता था। उन्होंने सल्ट महादेव को विरोधी सेना से मुक्त कराया लेकिन भिलण भौण में उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। भिलण भौण के युद्ध में उनकी दोनों सहेलियां बेल्लु और रक्की वीरगति को प्राप्त हो गयी। तीलू इससे काफी दुखी थी लेकिन इससे उनके अंदर की ज्वाला और धधकने लगी। उन्होंने जदाल्यूं की तरफ कूच किया और फिर चौखुटिया में गढ़वाल की सीमा को तय की। इसके बाद सराईखेत और कालिंका खाल में भी उन्होंने कैत्यूरी सेना को छठी का दूध याद दिलाया।
सराईखेत को जीतकर उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लिया लेकिन यहां युद्ध में उनकी प्रिय घोड़ी बिंदुली को जान गंवानी पड़ी। बीरोंखाल के युद्ध के बाद उन्होंने वहीं विश्राम किया।
इसके बाद उन्होंने कांड़ागढ़ लौटने का फैसला किया लेकिन शत्रु के कुछ सैनिक उनके पीछे लगे रहे। तीलू और उनकी सेना ने तल्ला कांडा में पूर्वी नयार के किनारे में अपना शिविर लगाया। रात्रि के समय में उन्होंने सभी सैनिकों को सोने का आदेश दे दिया। चांदनी रात थी और पास में नयार बह रही थी। गर्मियों का समय था और तीलू सोने से पहले नहाना चाहती थी। उन्होंने अपने सा​थी सैनिकों और अंगरक्षकों को नहीं जगाया और अकेले ही नयार में नहाने चली गयी। तीलू पर नहाते समय ही एक कत्यूरी सैनिक रामू रजवार ने पीछे से तलवार से हमला किया। उनकी चीख सुनकर सैनिक जब तक वहां पहुंचते तब तक वह स्वर्ग सिधार चुकी थी। तीलू रौतेली की उम्र तब केवल 22 वर्ष की थी, लेकिन वह इतिहास में अपना नाम अमर कर गयी।
तीलू रौतेली की याद में गढ़वाल में रणभूत नचाया जाता है। डा. शिवानंद नौटियाल ने अपनी पुस्तक ‘गढ़वाल के लोकनृत्य’ में लिखा है, ”जब तीलू रौतेली नचाई जाती है तो अन्य बीरों के रण भूत/पश्वा जैसे शिब्बू पोखरियाल, घिमंडू हुडक्या, बेलु-पत्तू सखियाँ, नेगी सरदार आदि के पश्वाओं को भी नचाया जाता है। सबके सब पश्वा मंडांण में युद्ध नृत्य के साथ नाचते हैं

Saturday, September 9, 2017

मेरु बचपन और गाँव

मेरु बचपन और गाँव

ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
जख बसदी छै घिलुणी और डाल्यू की छांव।
ए जिंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।
जख ब्वारी लाज से मुंड ढक कर चलदी।
जख माँ का अनुसाशन माँ छै बेटी पलदी।
सभ्यूं थे नचे देन्दी छै दादी खल्डा मा लेटी।।
एक गुठ्यार मा रैंदा छा मिली जुली सभि भाई।
प्रेम से रैन सभी भाई दादा न ही बात सिखाई।
दादा जी हमथे सिखान्दा छ जिंदगी भर कु दाव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

गांव मा होन्दु छौ अदब सभी बड़ा बुजुर्गों कु।
ज़ोर से भी नि बोली कभी के नाती न दादा कु॥
नींद आई नि कभी सुणी क्वी, बिना कहानी कु।
आज भी याद आना रंदिन कहानी दादी सुनाई जु।।
सहर बटि ले चल जिंदगी मेरी मे थे मेरु प्यारु गाँव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

खाली बैठ्या होन्दा छा जब कभी घर मा बाबा जी।
न्यार, जूड़ा ऑर म्वाला बड़ोंदा छा गोरू बछरू कु जी॥
उठ जाँदा छा लोग सभी तब  आन से पैलि घाम।
और कर दीन्दा छा पूरा सभी दुफ़रा से पैलि काम॥
हे प्रभु मिथे फिर व सुबर फिर दिखे दे पदयून छौ पाँव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

होली जब हुँदी छै म्वास उल्टा तवा का लगांदा छा।
बचपन मा “होली का दाना” गीत हमेसा गान्दा  छा॥
गिली डंडा, खोखो, आँख मिचोनी, हमुन सभी खेली॥
छुटा छा जब फील्डिंग भी सबसे मुड़ी कल्न मा कैरी।
सुबर सेबर बंठा लेकी जान्दा छा लाना कु पाणी नाव।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

जान्दा छा जब सभी दग्ड्या स्कूल खिलण ढ़ौ का पार।
आज भी याद आन्दी स्कूल क और गुरुजी की वा मार॥
आज भी याद आन्दी  स्कूल मा बिचदा छा गदमया औंला।
दिन्दा छ्या चार ,फाड़ीक दुक्खड़ का बदली औंला ॥
कोदा झंगोरा ऑर गेहूँ का बाटु मा बंददा छ्या डाम ।
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

आज भी याद करना रैंदा बख़रा ऑर पौला डांग।
जख चरयां छा सभी दग्ड्यो दगड़ी गौड़ी बाछी ढ़ांग॥
डिन्ड बाती लान्दा छ्या ककड़ी अमरूद ऑर आम।
कभी हमुन नि करी यों सभी फल फूलों  का दाम।
बैठ्या रैंदा ख़ानक यों  फलों थे आम डाली का छांव॥
ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

हरयाली ऑर डांडी कान्ठ्यू का बीच बश्यू च।
पाणी भी कमी नि यख सीम ऑर धरगुड़ च॥
याणु भलु गौं च मेरु जख भूम्या ऑर महादेव च।
पित्रों कु बसायूं स्यालना  मेरु सत सत नमन च ॥
दिल्ली गुड़गाँव का प्रदूषण देन्दु च फेफड़ो मा घाव।।

ए ज़िंदगी मिथे लौटे दे मेरु प्यारु गाँव।

स्यालना थे स्वस्थ बनाण

स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण

स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
हम सभ्युं थे मिल जुल करिक,
जे से जु व्हे साकु वो करिक । 
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
जब व्हालु गौं हमारू स्वच्छ,
त लोग सभी व्हाला स्वस्थ ।
सभी गाओं थे ये सीख सिखाण,
उत्तराखंड थे भी स्वच्छ बणाण ।
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण । 
अणसल गदन की गंदगी सारी,
और गंदगी गुजारी की सारी ।
गाँव से दूर बहुत हटाण,
स्यालना थे स्वच्छ बनाण । 
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
व्हालु जब गौं हमारू स्वच्छ,
तभी थ व्हालु देश हमरु स्वस्थ ।
स्यालना थे स्वच्छ बनाण ,
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
सीम क पाणि व्हालु जब साफ ,
व्हालु जब धलगुड़ क पाणि साफ ।
पाणी व्हाला जब सभी साफ ,
तभी त मिट जाला सभी रोग ब्याध।
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
आओ सभी जना करला संकल्प,
ओर कवि नि व्हा मन माँ बिकल्प ।
सारी गंदगी थे जड़ से मिटाण,
स्यालना थे स्वच्छ बनाण । 
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण ।
मनख्यात थे मन याद कारिक,
विनम्रता थे दिल मा रखिक ।
मानिखि नि बाणु मनख्यात कु,
नि व्हा मन मा क्वी भाव बुरे कु ।
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण
स्यालना थे स्वस्थ बनाण । 
मानिखि नि हो मानिखि कु बैरी,
हे प्रभु बुरा भाव गाँव से दूर कैरी ।
बुराइयों थे गाँव से दूर हटाण,
स्यालना थे स्वच्छ बनाण ।
स्यालना थे स्वच्छ बन्णाण

ताजवीर सिंह